भारतीय मूल के भाई-बहन अमेरिका में बुजुर्गों में कोरोना से लड़ने का जज्बा जगा रहे, एक हजार से ज्यादा लोगों को मिला फायदा

 कोरोना का सबसे बुरा असर बुजुर्गों की सेहत पर हुआ है। इससे उनमें डर बैठ गया है और वे नकारात्मक होने लगे हैं। यूरोपीय देशों के अलावा अमेरिका में भी बुजर्ग परेशान हैं। इसे देखते हुए पेन्सिल्वेनिया में रहने वाले भारतीय मूल के भाई-बहन वहां के बुजुर्गों को कोरोना से लड़ने के लिए भावनात्मक रूप से मजबूत करने की पहल कर रहे हैं। ये बुजुर्गों को नोटपैड, आर्ट, स्कैच बुक, कलर पेन्सिल और सुडाेकू जैसी चीजें देते हैं, ताकि वे अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकें। बुजुर्ग लिखकर या स्कैच बनाकर मन का बोझ कम कर लेते हैं। इससे वे कोरोना के खिलाफ भी खुद को मजबूत बना पा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि इस काम के लिए ये बच्चे खुद ही फंड जुटाते हैं।


मुहिम से जुड़े करीब 2700 बच्चे


हिता गुप्ता (15 साल) हाईस्कूल और इनका भाई दिवित गुप्ता (9 साल) चौथी कक्षा में हैं। लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं, इस समय का इस्तेमाल वे बुजुर्गों के लिए काम करके कर रहे हैं। हिता ‘ब्राइटन अ डे’ नाम से एनजीओ भी चलाती हैं। इस मुहिम से करीब 2700 बच्चे जुड़ चुके हैं, वहीं 50 नर्सिंग होम के बुजुर्गों तक इसकी पहुंच है।


बुजुर्गों ने शुरू किया प्रचार


अमेरिका में बड़ी संख्या में बुजुर्ग अकेले या नर्सिंग होम में रहते हैं। कोरोना के कारण इनके मन में नकारात्मकता जल्दी घर करने लगी है। उन्हें इससे उबारने के लिए कुछ बुर्जुर्गों को नोटपैड और कलर पेंसिल दी गईं। शुरुआत में तो उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन धीरे-धीरे ये लोग रंगों और स्केच के जरिए अपने मन की बात व्यक्त करने लगे। इस कोशिश को बुजुर्ग इतना पसंद करेंगे इसका अंदाजा किसी को नहीं था। वे पहले से ज्यादा सकारात्मक महसूस कर रहे हैं। उन्हें यह पहल इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने प्रचार भी करना शुरू कर दिया है। 


बुजुर्ग अब खुद बच्चों को फोन करके यह सामान मंगवाते हैं


दो महीने से चल रही इस पहल से 50 नर्सिंग होम के एक हजार से ज्यादा बुजुर्ग जुड़ चुके हैं, अब वे बच्चों से संपर्क कर यह सामान खुद मंगवाते हैं। अमेरिका में बुजुर्गों के लिए खासतौर पर नर्सिंग होम हैं। कोरोना के कारण इन नर्सिंग होम्स को स्थानीय प्रशासन ने आइसोलेट कर दिया है।


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